नहीं तोड़े मेरे सपने मैंने
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मैं स्वतंत्र था सपने देखने के लिए।
दिन में भी।
देखा एक दिन मैंने दूसरे अच्छे दिन का सपना।
कठिनाइयों और विषम परिस्थियों के अलावा
लेंघी मारनेवालों का हुजूम था।
समय में अवसाद था पर,मन संघर्ष को प्रस्तुत।
अपने बराबर के लोगों से करनी थी ईर्ष्या
किया मैंने प्रतिस्पर्द्धा।
उन्हें मनुष्य होने के नाते करना था प्रतिस्पर्द्धा
किया किन्तु, ईर्ष्या बिना पर्दा।
श्रम,लगन,कर्मठता के सामने रहा खड़ा
धर्म,जातियाँ,विशिष्टतावाद,पक्षपात।
भाई-भतीजावाद के अलावा भी भिन्न-भिन्न घात।
मैं अपने सपने के लिए रहा प्रतिबद्ध।
प्रतिकूलताओं से अभीत कटिबद्ध।
धर्मगत और जातिगत निषेधों की दी गई व्यथाओं को झेला
किन्तु,अपने सपने का खेल दृढ़ता से खेला।
एक सपना एकांगी नहीं होता बल्कि बहुस्तरीय।
हर स्तर पर पक्षधरों ने खड़े किए अवरोध
सामाजिक,पारिवारिक,धार्मिक,आर्थिक जैसे विरोध।
मेरे पास पसीना था मैंने बहाये।
मेरे पास श्रम थे मैंने किए।
मेरे पास प्रयास थे मैंने अनवरत किए।
मेरे पास धूर्तता नहीं थी मैं दांव हारा।
मेरे पास मिथ्याचार नहीं थे मैं दंडित हुआ।
मेरा देखा हुआ स्वप्न खंडित हुआ।
क्षमताओं से परिपूर्ण आपका व्यक्तित्व हुआ रूंआसा।
राजनैतिक,सामाजिक,ऐतिहासिक,आर्थिक सत्ता ने
आपके अस्तित्व को किया धूँआ सा।
यह मात्र कविता नहीं आपका है भाग्य।
मेरा कर्तव्य था किया आगाह।
मेरे सपने मैंने नहीं तोड़े।
सपनों के आँख किसी और ने हैं फोड़े।
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अरुण कुमार प्रसाद 21/12/22