नहीं तुम सा कहीं रघुवर….
नहीं तुम सा कहीं रघुवर, दिखा हमको जमाने में।
हमें तो तुम सदा प्रभुवर, लगो अपने जमाने में।
हमारी हर कमी तुमने, सुधारी है नसीहत दे,
तुम्हारी ऋत कथाओं सा, नहीं है सार जमाने में।
भली है चेतना उनकी, दुखी मन जान लेती है।
मिटा अघ-भार रंजो गम, खुशी का दान देती है।
जगत्हितरत भगतवत्सल, नहीं उन सा मिला कोई,
चला आए शरण में जो, उसी को मान देती है।
-© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मुक्तक मौक्तिक” से