नहीं चाहिए अच्छे दिन ये
नहीं चाहिए
अच्छे दिन ये,
मुझे दिला दो
फिर से कोई
वही पुराने दिन बुरे ।
जीभ जला
देता है काढ़ा ।
तीखा-तीखा
गाढ़ा-गाढ़ा ।
घर का खाना
रोज़-रोज़ मैं
खाऊँ कैसे ?
बंद बजरिया
घर से बाहर
जाऊँ कैसे ?
नहीं चाहिए
मोबाइल ये
ला दो कोई
मुझे खिलौने,
टाफी, बिस्किट,कुरकुरे ।
सीढ़ी चढ़कर
छत पर जाना ।
और उतर
कमरे में आना ।
बीमारी का
ताव देखकर
घबराता हूँ ।
घर के भीतर
घुसा-घुसा मैं
उकताता हूँ ।
नहीं देखना
टी.वी.-ई.वी.
मुझे घुमा दो
गलियाँ,रस्ते
ऊबड़-खाबड़,खुरदुरे ।
आनलाइन
थोड़ा पढ़ लेना ।
स्वप्न नया
कोई गढ़ लेना ।
मोबाइल पर
टिक-टिक करते
बीत रहे दिन ।
भारी-भारी
खाली-खाली
रीत रहे दिन ।
नहीं चाहिए
दाल-भात ये
ला दो कोई
मुझे जलेबी
दही,समोसे,चुरमुरे ।
नहीं चाहिए
अच्छे दिन ये
मुझे दिला दो
फिर से कोई
वही पुराने दिन बुरे ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी(रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।