नहीं चाहता
मुस्कुराहट मेरे लब को छू लेगी अब
पर ये ज़ालिम जमाना नहीं चाहता
कौन है जग में जो कभी तन्हा न हुआ
कौन है जो मुस्कुराना नहीं चाहता
कोरी झूठी हँसी हो मुबारक तुम्हे
मैं ऐसे हँसना- हँसाना नहीं चाहता
दर- बदर फिर रहा मुश्किल से दौर में
मैं अब मुक़म्मल ठिकाना नहीं चाहता
घाव अब भी मेरे नहीं हैं भरे
पर मैं इनको दिखाना नहीं चाहता
ख्वाब सो जाएँ मेरे चाहते हैं सभी
पर मैं हरगिज सुलाना नहीं चाहता
मैं चाहता हूँ के वो भूल जाए मुझे
मैं उसे याद आना नहीं चाहता
– सिद्धार्थ गोरखपुरी