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17 Feb 2024 · 1 min read

नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब

नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब
नहीं आतीं वहाँ से सिसकियाँ अब,
अगर तुम याद अब भी कर रहे हो
नहीं आतीं मुझे क्यूँ हिचकियाँ अब,
समझदारी बहुत आयी है उनमें
नहीं खुलती हैं पल में लड़कियाँ अब,
वही जो शोर की ख़ातिर पिटा था
बहुत खलती हैं उसकी चुप्पियाँ अब
किसी गुलशन सा मन मुरझा गया है
नहीं भाती हैं उसको तितलियाँ अब,
न कोई हो ख़लल तन्हाइयों में
शिक़ायत कर रही हैं चूड़ियाँ अब।

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