नहीं क्यों आजमाया जो शिकायत है अभी बाकी।
. गजल
नहीं क्यों आजमाया जो शिकायत है अभी बाकी।
नजर बदनाम है बेशक शराफत है अभी बाकी।
जुबां खामोश बैठी है यकीनन कुछ दबा दिल में।
किसी अहसास-ए-दिल का अमानत है अभी बाकी।
हुए हैं हुस्न के बाजार में सौदे मुहब्बत के।
किसी खालिस मुहब्बत की तिजारत है अभी बाकी।
बहुत पूजे हजर लेकिन न वो तस्कीन हो पायी।
मुजस्समे’- इश्क की शायद इबादत है अभी बाकी।
यहाँ हर सम्त में गूंजे नये पैगाम उल्फत के।
मुकद्दस जज्ब का दिल से अलामत है अभी बाकी।
घना तीरग भले छाकर खतर फैला रहा लेकिन।
लवों पर मुस्कुराहट की रिआयत है अभी बाकी।
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अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)