नसीहत
नसीहत
एक बुजुर्ग कुत्ता अपने बच्चे को समझाता है,
मौलिकता के साथ रहो जो कुत्ता भगवान से पाता है.
आजकल झूठ है तुम्हारी बात बात में,
हर वक्त रहते हो धोखा देने की ताक में.
तुम्हारी कुत्ते की वफ़ादारी घटती जा रही है,
और आदमी सरीखी मक्कारी बढती जा रही है.
कहाँ से सीख आये झूठ, धोखाधड़ी और मक्कारी,
ये तो आदमी की खूबियां हैं सारी की सारी.
अच्छे नहीं तुम्हारे ये लक्षण,
आदमी बनते जा रहे हो दिन ब दिन.
क्या रहने लगे हो आदमियों की संगत में ?
जो ये फर्क आ गया है तुम्हारी रंगत में.
कहाँ विलुप्त होता जा रहा है तुम्हारा कुत्तापन ?
क्या जताना चाहते हो तुम आदमी बन ?
गांठ बाँध लो मेरी यह नसीहत,
वरना आज के आदमी की सी होगी तुम्हारी फजीहत.
सच्चाई और वफ़ादारी हमारी मौलिकता है,
झूठ और मक्कारी से तो आदमी अपना चेहरा ढंकता है.
हमारे और आदमी में यही तो अंतर है,
उसके पास तो झूठ और धोखधड़ी निरंतर है.
आदमी तो अपने आप से भी झूठ बोल लेता है,
दूसरे तो दूसरे खुद को भी धोखा देता है.
अपनी मौलिकता को भूल कर भी मत छोडो,
जैसा भगवान ने बनाया है वैसे रहो, ईन्सान के पीछे मत दौड़ो.
विवेक का प्रयोग करो भावों में मत बहो,
जैसा प्रमात्मा ने बनाया है वैसे ही रहो,
आदमी से हमारी क्या समानता,
वफ़ादारी क्या है वो हम से बेहतर नहीं जानता.
कुत्ते और उसके बच्चे की बातचीत अंदर तक हिला गई,
उनकी यह चर्चा हमें औकात याद दिला गई.