नस़ीहत
ज़िन्दगी भर नफ़े नुक़सान का हिस़ाब रखा।
जो लम़्हे गवाँ दिए उनका हिस़ाब ना रखा।
अपनी खुशगवारी और खुदग़र्ज़ी में मश़गूल रहे दूसरों के दर्द़ का खय़ाल ना रखा ।
अब कहते हो है न कोई मेरा दर्द बांटने वाला ।
है न कोई मेरा ख्या़ल रखने वाला ।
वक़्त रहते जो श़ख्स बदलता नहीं ।
उसे कोई बढ़कर हाथ देने वाला मिलता नही ।
अपने ही जुऩून मे तुम अपने म़ाहौल से अनजान रहे। अब वो ही श़ख्स जो तुम्हारे साथ थे तुम्हें ना पहचान रहे ।
बेरहम बने रहे जिंदगी भर अब तुम हमदर्दी तलाश रहे ।
अपनी हस्ती के ग़ुरूऱ मे तुम औरो की हस्ती भुलाते रहे।
अब हरगिज़ न लौटकर आयेंगे वो चाहे लाख तुम उन्हे बुलाते रहे।