नशे की आदत लग गयी है मुझको।
नशे की आदत लग गयी है मुझको।
खुद के सिवाय किसी में अब मैं रहता नहीं हूँ।।1।।
इतना बदनाम हो चुका हूं दुनिया में।
और बदनाम हो जाने से अब मैं डरता नहीं हूँ।।2।।
एक वो ही थी बस समझने के लिए।
अपनी माँ को भी यूँ अब मैं समझता नहीं हूँ।।3।।
उजालों की ख़्वाहिश ना है अब मुझे।
क्योंकि काले अंधेरों से अब मैं डरता नहीं हूँ।।4।।
काफी वक्त बीता है सबसे लड़ते हुए।
अपने पराये किसी से अब मैं लड़ता नहीं हूँ।।5।।
थोड़े से हंसे क्या हजारों गम मिले है।
इसीलिए यूँ जिंदगीं में अब मैं हंसता नहीं हूँ।।6।।
जहनी तौर पर मैं बहुत ही पक्का हूँ।
ज़िन्दगी में किसी की अब मैं सुनता नहीं हूँ।।7।।
ठंडा पड़ गया हूं मैं बहुत ही ज्यादा।
जलने की तो छोड़ों अब मैं सुलगता नहीं हूँ।।8।।
ज़िंदगी गमों का समंदर बन गयी है।
सांसे है सीने में पर अब मैं धड़कता नहीं हूँ।।9।।
कुछ ना रहे अहसास अब जीने में।
आग लगा देने से भी अब मैं जलता नहीं हूँ।।10।।
अब क्या बताए परेशानी हम अपनी।
ज़िन्दगी तो है पर अब मैं इसे जीता नहीं हूँ।।11।।
मुझसे जुड़े कई मोहब्बत के रिश्ते है।
यूँ अरमांन तो है पर अब मैं मचलता नहीं हूँ।।12।।
मजाक बनाना है तो बना लो हमारा।
किसी से कुछ अब मैं कहता-सुनता नहीं हूँ।।13।।
मत दो हमको नसीहते कुरआन की।
यूँ मुसलमाँ के जैसे तो अब मैं रहता नहीं हूँ।।14।।
उठ गया है भरोसा इबादत से मेरा।
मस्जिदों में नमाजों को अब मैं पढ़ता नहीं हूँ।।15।।
पेट की भूंख को ही बस मिटाना है।
यूँ खाने में कोई अब मैं नुक्स देखता नहीं हूँ।।16।।
कुछ तो ज़िल्लत अभी भी है मुझमे।
किसी का फेका अभी भी मैं उठाता नहीं हूँ।।17।।
खुद के सवालों में उलझ गया हूं मैं।
दूसरों से कोई सवाल अब मैं करता नहीं हूँ।।18।।
लंबी फेहरिस्त है दोस्ती दुश्मनी की।
नये दोस्त दुश्मन कोई अब मैं बनाता नहीं हूँ।।19।।
ले लिए है काफी अहसान मैंने सबसे।
और अहसान यूँ अब मैं लेना चाहता नहीं हूँ।।20।।
हर नज़र ने लूटा है मुझको नज़र से।
हर नज़र पर अब मैं अकीदा करता नहीं हूँ।।21।।
कैद हो गयी है जैसे ये ज़िन्दगी मेरी।
परिन्दों सा अब मैं आसमाँ में उड़ता नहीं हूँ।।22।।
उनको दिक्कत है मेरे लिखने से भी।
इसिलए अब मैं ज्यादा कुछ लिखता नहीं हूँ।।23।।
जिये है मैने खुशी गम यूँ तो बहुत ही।
प्यार,नफरत अब मैं किसी से करता नहीं हूँ।।24।।
बे-दिली से अब ग़ज़रते है दिन सारे।
दिल की बातें अब मैं किसीसे करता नहीं हूँ।।25।।
खुद से ही हूँ मैं यूँ तो शर्मिन्दा बहुत।
किसी से भी अब मैं मिलता जुलता नहीं हूँ।।26।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ