नशीली नजर
* नशीली नजर (गजल) *
**** 221 221 22 ***
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मय सी नशीली नजर है,
दिखता नशे का असर है।
आँखें पिलाती सुरा को,
खुद की नहीं कुछ खबर है।
तुम हो बनी दीप की लौ,
जीवन हुआ अब अमर है।
कण कण लहू में समाया,
हर पल सुहाना सफर है।
खुश हो गया है बुझा मन,
छोड़ी न बाकी कसर है।
जादू बिखेरा जहां पर,
है हर तरह तम पसर है।
सूरत गजब अजब सीरत,
हिय में बहुत ही कदर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)