नशा विरोधी दोहे
नशा छोड़िये आप सब, विनती है कर जोर।
राह देखता आपके, जीवन का नव भोर।।(1)
नव पीढ़ी ही लिप्त है, देखो मद में आज।
हे ईश्वर! फिर किस तरह, उत्तम बने समाज।। 2
नशा छोड़ दो भाइयों, मानो मेरी बात।
लीवर किडनी पर करे, यह सीधे आघात।।(3)
धुँआ निगलना छोड़ दो, करो नहीं मधु पान।
इससे जलता फेफड़ा, खो जाता सम्मान।।(4)
तोड़ रहा है यह नशा, निशदिन घर परिवार।
इस पहलू परभी करो, थोड़ासभी विचार।। (5)
आग नशे की जल रही, झुलसे सारा देश
जहाँ नशे की पैठ है, होता दिखे कलेश।। (6)
बन्द नशे का हो यहाँ, घृणित नशा व्यापार।
उन्नति हो फिर देश का, सुखी रहे परिवार।।(7)
बीवी बोली हे सजन, दारू मेरी सौत।
इसको गले लगा नहीं, यह देगी केवल मौत।।8)
दूध, दही, घी खाइये, जिससे बने शरीर।
नशा करोगे तो बहे, सिर्फ़ आँख से नीर।। (9)
नाश करेगा यह नशा, छोड़ो इसको आज।
आओ हमनिर्माण करें, उत्तमएक समाज।(10)
छलनी करता फेफड़ा, बीड़ी और शराब।।(11)
घर-धन बिखरे और यह, जीवन करे खराब।।
प्रीतम श्रावस्तवी