“”” नशा मुझको था चढ़ा “””
नशा मुझको था चढ़ा ,मैं खूब पढ़ा, स्वप्न मैंने गढ़ा
कल को कोई सेवा पद पर जाऊंगा, कर्तव्य अपना निभाऊंगा
पर यह क्या सपना मेरा टूट गया, नसीबा मुझसे रूठ गया
जिस पद के योग्य था मै, उसे कोई और ले उड़ा।
रहने लगा मैं डरा डरा, था शिक्षा का ऋण बहुत बुरा।
सोच सोच के गला भरा, ऋणदाता था दर पे खड़ा।।
मेरे जैसे और भी अनेकों, इसी उलझन में खोए हैं।
वांछित योग्यताओं के बाद भी, अंदर ही अंदर रोए हैं।
कोई तो पोंछे अश्रु उनके, सागर से बड़ा भर गया घड़ा।।
सोचता हूं छोटा-मोटा काम करूं, गरीब हूं पेट तो भरू।
कैसे उतार पाऊंगा ऋण इतना, जिसने चहुं और से मुझे जकड़ा।
अनुनय आश्वासनों का तो रोज लगता रहा तड़का।।
राजेश व्यास अनुनय