‘नव संवत्सर’
नव यौवन लिए प्रकृति आ गई,
तरुवर ने किया पुष्प श्रृंगार।
नव संवत्सर ने दरबार सजाया,
माँ दुर्गा की रहा आरती उतार।
मंद पवन मंदराचल से चल पड़ी,
सहलाती हो ज्यों जननी पुचकार।
है उपवन खड़ा थाल सजाकर,
सुगंधित रंग-बिरंगे पुष्पों के हार ।
ठिठुरन भागी रख सर पर पाँव,
भ्रमर अलख जगाते कर मधुर गुंजार।
घर-मंदिर जले दीप धूप सुगंधित ,
हो सुवासित महक रही बहार।
आओ मनाएँ तन-मन शुचिता से,
नव वर्ष का मंगलमय त्योहार।
धन्य धान्य से घर भंडार भर रहे,
माँ वसुधा से मिल रहा उपहार।
घर-घर बज रहे ढोल मंजीरे,
देवालय में दर्शन को लगी कतार।
कहीं माता के पांडाल अनोखे,
कहीं रघुनंदन की जय-जयकार।
स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड