नव विवाहिता
मादक धरती मादक अम्बर
मादकता से भरपूर चमन
मादक कर्ण की लौ भी है
मादक होंठों का प्यारा मिलन
मदमस्त फ़िज़ा मदमस्त पवन
मदमस्त हैं होंठ मदमस्त नयन
मदमस्त यह दिन मदमस्त बहार
मदमस्त जवानी की मस्त पुकार
पैरों में रची मदमस्त महावर
पायल की मदमस्त झंकार
यौवन का आलम है यह
मदमस्त करे वह बारम्बार
अम्बर भी मदमस्त हुआ
देख के धरती का जोबन
पुष्पों से सजी वन देवी का
आतुर है लेने को चुम्बन
कस्तूरी की सुगंद से महका
नवविवाहिता का समस्त बदन
सींचा होंठों ने जब मन को
हुआ गुलाब का नव रोपण
दो पर्वत के मध्य-स्थली में
तब बर्फ पिगलने लगती है
सूरज भी मंद हो जाता है
धरा की प्यास जब बुझती है
———————————–
सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल