नव जीवन
जा तो रही हो छोड़ के मुझको, करके मरणासन्न
यादों में नित आती रहना, बनकर नव जीवन ।
वे बचपन के खेल निराले
सावन के झूले
झटपट डालों पर जा चढ़ना
कहना, आ छू ले!
पल में गुस्सा,पल में दोस्ती, कहाँ वो अपनापन?
पनघट से आ बरगद नीचे
गोद में सिर सहलाना
अपने भाग का आधा हिस्सा
छुपके मुझे दे जाना।
अमियाँ तले बुलाना, कँगना खनकाकर खन-खन!
मिले सफलता पग-पग तुझको
हारूँ मैं प्रतिपल
कीर्ति पताका फहरे तेरी
छू ले नभ मण्डल।
तेरे रुख पे सूरज निकले, झूमे मस्त पवन!
प्यार मिले संसार खिले
हर आतप से निर्भय हो
खुशियों का नित बरसे सावन
सुंदरि! तेरी जय हो।
मैं निर्जन श्मशान बनूँ, तु अमियमूरि ‘नंदन’!
✍ रोहिणी नन्दन मिश्र, इटियाथोक
गोण्डा- उत्तर प्रदेश