‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’ में रमेशराज के विरोधरस के गीत
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-1 ||
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” जन के बदले नेता को ले
नेता को ले , कवि अब बोले
कवि अब बोले , खल की भाषा
खल की भाषा में है कविता
कविता में विष ही विष अर्जन
विष अर्जन को आतुर कवि – मन | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-2 ||
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” तम का घेरा , नहीं सवेरा
नहीं सवेरा , सिर्फ अँधेरा
सिर्फ अँधेरा , चहुँ दिश दंगे
चहुँ दिश दंगे , भूखे – नंगे
भूखे – नंगे , यम का डेरा
यम का डेरा , तम का घेरा | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-3 ||
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” खूनी पंजे , फंद – शिकंजे
फंद – शिकंजे , छुरी – तमंचे
छुरी – तमंचे , लेकर कट्टा
लेकर कट्टा , दीखें नेता
दीखें नेता मति के अन्धे
अन्धे के हैं खूनी पंजे | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-4 ||
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” सब कुछ मंहगा बोले नथुआ
बोले नथुआ , ये लो बथुआ
बथुआ भी अब भाव पिचासी
भाव पिचासी , चाल सियासी
चाल सियासी , चुन्नी – लहंगा
चुन्नी – लहंगा , सब कुछ मंहगा | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-5 ||
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” ओ री मैना ओ री मैना
मेरी बेटी ! मेरी बहना !
मेरी बहना ! जाल बिछाये
जाल बिछाये, खल मुस्काये
खल मुस्काये , बच के रहना
बच के रहना , ओ री मैना ! ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-6 ||
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” देशभक्त की लीला न्यारी
लीला न्यारी , कर तैयारी
कर तैयारी , लूट मचाये
लूट मचाये , जन को खाये
जन को खाये , प्यास रक्त की
प्यास रक्त की , देशभक्त की | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-7 ||
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” बनता ज्ञानी , अति अज्ञानी
अज्ञानी की यही कहानी
यही कहानी, है बड़बोला
है बड़बोला, केवल तोला
केवल तोला, टन-सा तनता
टन-सा तनता , ज्ञानी बनता | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-8 ||
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” कवि की कविता में खल बोले
खल बोले विष जैसा घोले
घोले सहमति में कड़वाहट
कड़वाहट से आये संकट
संकट में साँसें जन-जन की
जन की पीड़ा रही न कवि की | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-9 ||
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” ब्रह्मराक्षस कैंची छोड़ें
कैंची छोड़ें , चाकू छोड़ें ,
चाकू छोड़ें , सिलें पेट जब
सिलें पेट जब , होता यह तब –
होता यह तब , झट पड़ता पस
बने डॉक्टर , ब्रह्मराक्षस | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-10 ||
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” रात घनी है , दीप जला तू
दीप जला तू , क्या समझा तू ?
क्या समझा तू ? साजिश गहरी
साजिश गहरी , सोये प्रहरी
सोये प्रहरी , रति लुटनी है
रति लुटनी है , रात घनी है | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-11 ||
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” जिसको हम सब , मानें सूरज
मानें सूरज , तेज रहा तज
तेज रहा तज , इसे भाय तम
इसे भाय तम , अब तो हर दम
हर दम इसके तम में सिसको
सिसको , सूरज मानो जिसको | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-12 ||
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” जेठ मास को , बोल न सावन
बोल न सावन , बता कहाँ घन ?
बता कहाँ घन ? बस लू ही लू
बस लू ही लू , कोयल – सा तू
कोयल – सा तू अधर रास को
अधर रास को , जेठ मास को | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-13 ||
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” तेज गया अब तेजपाल का
तेजपाल का , धर्म – डाल का
धर्म – डाल का फूल सुगन्धित
फूल सुगन्धित बदबू में नित
बदबू में नित बापू का सब
बापू का सब तेज गया अब | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-14 ||
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” आग सरीखे हर विचार को
हर विचार को , हर अँगार को
हर अँगार को और हवा दो
और हवा दो , क्रान्ति बना दो
क्रान्ति बना दो , बन लो तीखे
बन लो तीखे , आग सरीखे | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-15 ||
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” आज क्रान्ति का राग जरूरी
राग जरूरी , आग जरूरी ,
आग जरूरी , गमगीं मत हो
गमगीं मत हो , भर हिम्मत को ,
भर हिम्मत को , खल से टकरा
राग जरूरी आज क्रान्ति का | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-16 ||
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” नयी सभ्यता आयी ऐसी
आयी ऐसी , कैसी – कैसी ?
कैसी – कैसी चमक सुहानी !
जेठ संग भागे द्वौरानी
द्वौरानी ने त्यागी लज्जा
लज्जाहीना नयी सभ्यता | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-17 ||
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” घर के ऊपर छान न छप्पर
छान न छप्पर , वर्षा का डर
वर्षा का डर , धूप जलाए
धूप जलाए , ‘ होरी ‘ अक्सर
‘ होरी ‘ अक्सर , ताने चादर
ताने चादर , घर के ऊपर | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-18 ||
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” कैसा योगी , नारी रोगी !
नारी रोगी , मिलन – वियोगी !
मिलन – वियोगी , धन को साधे !
धन को साधे , राधे – राधे !
राधे – राधे रटता भोगी
रटता भोगी , कैसा योगी ? ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-19 ||
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” इतना वर दो मात शारदे !
मात शारदे , हाथ न फैले
हाथ न फैले , कभी भीख को
कभी भीख को , अब इतना दो
अब इतना दो , दूं जग – भर को
दूं जग – भर को , इतना वर दो | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-20 ||
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” हत्यारा अब मुस्काता है
मुस्काता है , तम लाता है
तम लाता है , देता मातम
देता मातम , जब हँसता यम
यम फूलों – सम लगता प्यारा
प्यारा – प्यारा अब हत्यारा | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-21 ||
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” आओ प्यारो ग़म को मारो
ग़म को मारो , तम को मारो
तम को मारो , चलो नूर तक
चलो नूर तक , दूर – दूर तक
दूर – दूर तक , रश्मि उभारो
रश्मि उभारो , आओ प्यारो | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-22 ||
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” कबिरा – सूर संत ज्यों नरसी
नरसी , मीरा , दादू , तुलसी
तुलसी जैसे अब बगुला – सम
अब बगुला – सम , मीन तकें यम
यम का धर्म सिर्फ अब ‘ धन ला ‘
‘ धन ला ‘ बोले मीरा – कबिरा | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-23 ||
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मैना बेटी , बेटी कोयल
बेटी कोयल , बेटी सत्फल ,
बेटी सत्फल , क्रोध न जाने
क्रोध न जाने , बातें माने ,
बातें माने मात-पिता की
मात-पिता की मैना बेटी |
+रमेशराज
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-24 ||
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आम आदमी जाग रहा है
जाग रहा है , भाग रहा है
भाग रहा है खल के पीछे
खल के पीछे , मुट्ठी भींचे
मुट्ठी भींचे, बन चिगारी
बन चिंगारी , आम आदमी |
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-25 ||
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“हरजाई था नारी का प्रिय
प्रिय ने बना लिया उसको तिय
तिय के संग पिय ने धोखा कर
धोखा कर लाया कोठे पर
कोठे पर इज्जत लुटवाई
लुटवाई इज्जत हरजाई | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-26 ||
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“लाठी गोली कर्फ्यू दंगा
कर्फ्यू दंगा, जले तिरंगा
जले तिरंगा, काश्मीर में
काश्मीर में, नैन नीर में
नैन नीर में, पाक ठिठोली
पाक ठिठोली, लाठी गोली | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-27 ||
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” स्वच्छ न पानी, बिजली संकट
बिजली संकट, राम-राम रट
राम-राम रट, जीवन बीते
जीवन बीते, बड़े फजीते
बड़े फजीते, दुखद कहानी
दुखद कहानी, स्वच्छ न पानी | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-28 ||
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चाकू तनते, अब क्या हो हल
अब क्या हो हल, मानव पागल
मानव पागल, जाति-धर्म में
जाति-धर्म में, घृणा-कर्म में
घृणा-कर्म में, हैवाँ बनते
हैवाँ बनते, चाकू तनते | ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-29 ||
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” बादल सुख के , कहीं न बरसें
कहीं न बरसें, क्या जन हर्षें ?
क्या जन हर्षें, बस दुःख ही दुःख
बस दुःख ही दुःख, अति मलीन मुख,
अति मलीन मुख, उलझन पल-पल
उलझन पल-पल, दुःख दें बादल |
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-30 ||
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आँखें पुरनम, बहुत दुखी हम
बहुत दुखी हम , कहीं खड़े यम
कहीं खड़े यम , कहीं फटें बम
कहीं फटें बम , चीखें-मातम
चीखें-मातम , अब ग़म ही ग़म
अब ग़म ही ग़म , चीखें-मातम |
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-31 ||
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हम रावण-से , कौरव-दल से
कौरव-दल से , दिखते खल से
दिखते खल से , लूटें सीता
लूटें सीता , लिये पलीता
लिये पलीता , फूंकें हर दम
हर दम दुश्मन नारी के हम |
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-32 ||
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खल ललकारे , पल-पल मारे
पल-पल मारे , जो हत्यारे
जो हत्यारे , चुन-चुन बीने
चुन-चुन बीने, जो दुःख दीने
जो दुःख दीने, उन्हें सँहारे
वीर वही जो खल ललकारे |
–रमेशराज —
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-33 ||
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” पीड़ा भारी, जन-जन के मन
मन के भीतर, सिसकन-सुबकन
सिसकन-सुबकन, दे ये सिस्टम
सिस्टम के यम, लूटें हरदम
हरदम खल दें, मात करारी
मात करारी, पीड़ा भारी || ”
(रमेशराज )
|| ‘नव कुंडलिया ‘राज’ छंद’-34 ||
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” बस्ती-बस्ती, अब दबंग रे
अब दबंग रे, करें तंग रे
करें तंग रे, तानें चाकू
तानें चाकू, दिखें हलाकू
दिखें हलाकू, जानें सस्ती
जानें सस्ती, बस्ती-बस्ती | ”
(रमेशराज )
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रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ-२०२००१