नवोदय के थे दरबार गए
-नवोदय अलमुनी डे-
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कई वर्षों जब बाद गए
नवोदय के दरबार गए
देखा जब प्रवेश द्वार
आँखो में झलका प्यार
दिल में हुई थी हलचल
याद आने लगा हर पल
बीते क्षण थे याद आए
नवोदय के दरबार गए
हाथ में पकड़े थी थाली
छात्र छात्राओं की टोली
माथे पर तिलक लगाया
सत्कारपूर्वक था बैठाया
हम बागम बाग हो गए
नवोदय के दरबार गए
बच्चों ने था रंग दिखाया
हमारा परिचय करवाया
एम.पी.कक्ष का वो मंच
हमारा कभी था रंगमंच
बालकाल में हम खो गए
नवोदय के थे दरबार गए
कक्षाकक्ष थे वैसे के वैसे
हम छोड़कर गए थे जैसे
बैन्चों पर हम थे बैठ गए
स्कूली दिनों में खो गए
आँखे मूंदे हम थे खो गए
नवोदय के थे दरबार गए
वहीं भवन थे वही सदन
पर बदल गए नाम सदन
डबल डैकर बैड खो गए
कंक्रीट अब बैड हो गए
बच्चों में बैठ कर खो गए
नवोदय के थे दरबार गए
हमने जो तब पेड़ लगाए
उन पर हैं फल फूल आए
देख हुआ मन प्रफुल्लित
उनकी थी सुगंध सुगंधित
देख वहीं थे दिल हार गए
नवोदय के थे दरबार गए
मैस का था स्वादिष्ट खाना
लाइन में उसी भांति खाना
छोले पुरी दही चावल पानी
अंगुली उठे थी पहले वाली
मैस अफसाने याद आ गए
नलोदय के थे दरबार गए
इकट्ठे हुए थे कनिष्ठ वरिष्ठ
अब थे सभी विशेष वशिष्ठ
कहकहे और ठहाके ऊँचे
हँसते हम सभी ऊँचे ऊँचे
हम वहीं पर जाम हो गए
नवोदय के थे दरबार गए
आ गया फिर से वो लम्हा
होने लगा दिल फिर तन्हा
आँखे हमारी नम हो गई
रग -रग हमारी बंद हो गई
गले लग हम बाहर आ गए
नवोदय के थे दरबार गए
कई वर्षों जब हम बाद गए
नवोदय के थे दरबार गए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
9896872258
माथे पर तिलक