नवसंवत्सर पर दोहे
नवसंवत्सर पर दोहे
सुशील शर्मा
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा ,सूर्य भ्रमण हो मेष।
नवसंवत्सर हो शुरू ,हर्ष विमर्श अशेष।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,मधुर हर्षमय भोर।
नव संवत्सर आ गया ,मधुमय नवल किशोर।
ऋतु वसंत महका रही ,नाना वर्णी फूल।
ग्रीष्म ऋतु का आगमन ,सबके है अनुकूल।
नयी कोंपलें फूटतीं ,प्रकृति नटी मन हर्ष।
अन्न धान्य भरपूर हों ,मिटें सभी अपकर्ष।
युग सरिता यूँ बह रही ,जैसे गंगा नीर।
सृजन विसर्जन हो रहा ,काल निरंतर धीर।
संवत उन्यासी सुखद,राक्षस इसका नाम।
शनि देव राजा बने ,मंत्री गुरु सुख धाम।
शांत सौम्य सुखकर रहे ,नव संवत्सर वर्ष।
विश्वशांति के साथ हो ,मानव का उत्कर्ष।