फिर से नही बीस का विष इक्कीस
बीस बना विषधर
इक्कीस का क्या खबर ?
आने वाला दिन बताए
जाने वाला फिर लौट न आए,
शंका नही समाप्त है
भय अभी भी व्याप्त है,
गुजरे दिन वो याद है
ईश्वर से फ़रियाद है ,
मौत का ताण्डव अब ना होय
अनाथ अभागा कोइ ना होय ,
जीवन नईया तूफ़ान से निकले
सूखी बगियों में फिर फूल खिले ,
आओ नवसाल तुम्हारा स्वागत है
तुम्हें देखने के लिए व्याकुल अखियाँ जागत है,
पुरातन से विछोह , नूतन से मोह होता है
ये जगजाहिर है उगते सूरज से गर्म देह होता है,
आओ-आओ तुम्हें है नमन
तेरे आगमन से खिल जाय चमन,
तेरे दीदार को सजाएँ हैं महफ़िल
बना देना सुषुप्त को तू प्रगतिशील ।
नव वर्ष की बधाई सभी पाठकगण।
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