!! नववर्ष नैवेद्यम !!
कुंज-कली-कपोल किसलय कलरव
नव पुष्प नव पराग नव पीयूष पल्लव!
नव वन-उपवन वाटिका नवआभा बसंत
नवनीत नव परिधान ये धरती धरे अनंत!
मधुमास मधुर-मनमयूर मचल मांगे मकरंद
पशु-पक्षी, पादप पाये प्रेम-प्रणय प्रेमानन्द!
चहुंओर जब नव रंग उमंग नव उत्कर्ष हैं
तो समझो धरा में आया छाया नववर्ष है!
सनातनी नववर्ष सार्थक हर एक रुप में
हैं एकाकार प्रकृति के हरएक स्वरूप में!
क्षुब्ध हूं क्यों आज सनातनी भटक गया
पुरातन-अघतन में त्रिशंकु सा लटका गया!
हंसों की चाल थी तेरी कौंवे सा मटक गया
बढ़ा बसुधैव कुटुंबकम् में क्यों अटक गया!
क्षीण नही जो कच्चे मटके जैसे चटक गया
सहिष्णुता में तेरा शाश्वत तजना खटक गया!
मत विसरा प्रकृति को सदा उसके संग चल
प्रकृति की गोद में ही है तेरा कल उज्ज्वल!
विद्व-विज्ञान नियत है यह नववर्ष संवत्सर
नववर्ष शुभकामनाएं कर दे अभी अग्रसर!
सनातन धर्म के नववर्ष,नवसंवत्सर एवं चैत्र नवरात्र की आप सभी को सपरिवार बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं। ©-जीवनसवारो