नववर्ष अभिनंदन
नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन है
जग में यह वंदन है
प्रकृति में नवराग उन्माद है
बिखरा लताओं का जाल
पुष्प मुस्कान लिए
भंवर कर गुंजार रहे
तितलियां बैठी पंख पसार
मानों बस यही गान लिए।
जन मन में उल्लास है
मंगल मय आभास है
जग जीवन में अगाज लिए
नव भारत का यह स्वप्न लिए
जग में नवनिर्माण लिए
सनातन धर्म का जयघोष
बस यही उदघोष है
नील गगन का नवरंग है
नभ से धरा तक तरंग है
प्रकृति की छवि भी अनमोल
बदल गया है भुगोल
मन्दिरों में शंखनाद हुआ
घंटा ध्वनि बाजे ढोल मृदंग
नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
आर्यावर्त की रही सदा परम्परा
नूतन वर्ष तुम्हारा अभिनंदन है
नेहा