नववधू का भय
तुम्हारे प्रेम में सिमटी मैं,
लाज से भरी सी..
अपने सपनो के संसार में..
रम रही थी..
मेरे महावर भरे पांव,
नई कल्पनाओं के साथ..
तुम्हारे जीवन में
पग धर रहे थे।
मेरे हाँथो की मेंहदी!
हरपल..
जीवन के बदलते रूपों को सहेज रही थी।
मेरी चूड़ियों से बार-बार..
मेरी आतुर खुशी..खनक रही थी!
मेरे बालों की वेणी! मेरे जीवन के
हर मोहक बंधन को..
महका रही थी!
तुम्हारे प्रेम में रक्ताभ हुआ
मुख!
छुपाती सी मैं..
भयभीत थी..
कि अपना जीवन..
सपनों की रंगोली से,
नव-कल्पनाओं से
रचा-बसा रहेगा ना!
तुम्हारे चेहरे को मेरा नेह..
सदा ही..ढके रहेगा ना!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ