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29 Sep 2019 · 1 min read

नवरात्र

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नवरात्रो का शुभारंभ हो रहा है,
निज मन मयूर-सा नाच रहा है।
माँ बनाये रखना सदा कृपादृष्टि,
भक्त अंकिचन कर जोड रहा है।

दरबार अलबेला-सा सज रहा है,
पग पग गजब शमा बंध रहा है।
हे माँ !पधारना निज मन मन्दिर,
भक्त अंकिचन-सा पुकार रहा है।

गली गली मे जगराता हो रहा है,
हर भक्त तुझे ही गुनगुना रहा है।
हे माँ!दिखा देना जलवा मुझे भी,
भक्त अंकिचन राह संजो रहा है।

कोई भव्य-सा द्वार सजा रहा है,
रजत थाल आरती उतार रहा है।
स्वीकार लेना मेरे भी भक्तिभाव,
भक्त अंकिचन विनय कर रहा है।

कोई बल,बुद्धि,द्रव्य मांग रहा है,
कोई शोहरत,समृद्धि चाह रहा है।
हे माँ! रखना सदा हाथ सिर मेरे,
भक्त अंकिचन हाथ फेला रहा है।
============== =====
२९-०९-२०१९

✍️प्रदीप कुमार”निश्छल”

Language: Hindi
254 Views
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