नवरात्र साधना पर्व
आ गया पर्व साधना का,
नवरात्रि के नाम से।
शक्ति उपासना करके सुधारे,
जीवन लक्ष्य सत्कार्य से।
पेट प्रजनन आवास ही,
जीवन उद्देश्य नहीं है।
करें सत्कर्म साधक बन,
आत्मोनन्ति मार्ग यहीं हैं।
रजस्वला होती है प्रकृति,
चैत्र-आश्विन मास में ।
संक्रमण बढ़ता अधिक,
व्याप्त होता संसार में।
नो दिवस लगता समय,
दोष निवारण चाल में।
ऋतुओं का हे संधिकाल,
छैमाही अन्तराल में।
होते विचार प्रदूषित,
आत्मबल भी घटता है।
ऋतु परिवर्तन का। सूक्ष्म प्रभाव,
स्वास्थ पर भी पड़़ता है।
इसी बजह ऋषि मुनियों ने,
साधना पर जोर दिया है।
शारीरिक मानसिक मल विक्षेप,
दूर कराने प्रयत्न किया है।
नवरात्रि की न्यून स़ाधना,
अतिशुभ परम उपयोगि है।
उपवास जप या अनुष्ठान,
सामर्थ्यानुकूल जरूरी ह़ै।
कहता वैदिक धर्म सबहीं से,
सफलता देती है साधना।
सृजन और प्रकाश करती,
पूर्ण होति है सभी मनोकामना।
राजेश कौरव “सुमित्र”(उ.श्रे.शि.)