नवयौवना
दर्पण में मुख देखती,छुप-छुप बारंबार।
खुश होती नवयौवना, एकटक छवि निहार।।
कभी लटों से खेलती,करती कभी दुलार।
मंद-मंद मुस्का रही,अपना रूप सँवार।।
लाली,बिन्दी,पाउडर,चुनरी गोटेदार।
नैनों में काजल भरे, पहने मुक्ता हार।।
मुग्ध मगन हो देखती,नख-सिख तक श्रृंगार।
इठलाती नवयौवना,हँसते फूल बहार।।
कुंतल वेणी से सजा,टीका हरशृंगार।
मदन वाण घायल करे,छिड़े हृदय के तार।।
अल्हड़-सी बाली उमर,मन चंचल सुकुमार।
अंगभूत मादक कसक, वशीभूत संसार।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली