नवदुर्गाओं के औषधिय रूप
दैत़्य रूपी रोगे से लडती,
दुर्गा औषधि रूप में ।
‘हरड़’ रूप धर शैलपुत्री,
लडती उदर विकार में।।
ब्रह्मचारिणी है ब्राह्मी ‘में,
बुद्धी देती विचार में ।
चन्द्रघण्टा वसती ‘चंदूसुर’में,
लड़ती चर्म विकार में।।
कुष्मांडा़ ‘कुम्हड़ा’में बैठी,
जूझें रक्त विकार में।
स्कंदमाता है ‘तुलसी’ में,
बचाती त्रिदोष की चाल में।।
‘मोइया’में कात्यायनी बसती,
कफ रूपी दैत्यों से लडती।
कालरात्रि है ‘नागदौन’ में,
मन,मष्तिक में ताकत करती।।
महागौरी का रूप है ‘तुलसी’,
शक्ति,यौवन स्थिर रखती।
सिद्धिदात्री रूप में ‘शतावरी’,
जीवनीरस से पूरित करती।।
नवरूपों में माता दुर्गा,
नाना औषधियों में रहती है।
प्राणी मात्र को निरोग बनाने,
शक्तिरूप,प्रकृति में बसती है।।
राजेश कौरव सुमित्र