नवगीत
लौट आओ गाँव अब तुम
सुन रहा हूँ इस तरह कुछ
हो चला है और मधुरिम
आपसी संबंध
लौट आओ गाँव अब तुम
अब सटे हैं
प्रेम-पर्यक
बटी रस्सी की तरह
हो गये हैं
नीड़ पावन
घाट अस्सी की तरह
लग रहा है बन चुका फिर
अनुनयी संवाद संगम
अनुशयी तटबंध
लौट आओ गाँव अब तुम
शब्द के स्वर
की कशिश को
कुछ विटामिन धूप देती
मेघमाला
को चटकई
इन्द्रधनुषी रूप देती
उपक्रिया का चयन अभिमत
लहर का अनुवाद रिमझिम
अनुभवी अनुबंध
लौट आओ गाँव अब तुम
अवसरों की
मिली अनुमति
के खिले अनुपत्र अभिनव
सुबह हँसमुख
शाम सुरभित
संधि के नव सत्र संभव
हर जगह है हर्ष मुखरित
हो गया प्रतिरोध मद्धिम
अवयवी प्रतिबन्ध
लौट आओ गाँव अब तुम
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ