नवगीत
दस चावल का दो चावल
अगली सुबह
अँधेरी होगी
चौकस रहना है
पुनर्जन्म का पता लिख लिये
छिली हथेली पर
गई सदी का नाम लिख लिये
नई हवेली पर
कल का सूरज
अंधा होगा
चौकस रहना है
अनचाहे क्षण में उपजी हैं
कल की कवितायें
धूप मुँड़ेरों पर लटकी हैं
भटकीं सुविधायें
मंगल कल को
जंगल होगा
चौकस रहना है
आक्सीजन की राख हो गई
हवा पहाड़ी की
कैपसूल खा खाँस रही है
दवा दिहाड़ी की
कटुतापूर्ण
निमन्त्रण होगा
चौकस रहना है
चुल्लू भर पानी में डुबकी
रोज नहायेगी
दस चावल का दो चावल ही
चुटकी पायेगी
‘अपयश’ होगा
‘भारत भूषण’
चौकस रहना है
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ