नवगीत
कवि जो कुछ लिखता है
कवि जो कुछ लिखता है, वह
भाषा की संपति है |
मुँह से निकले हर अक्षर की
कोमल काया है,
रचनाओं के उठते पुल का
मंथन पाया है,
पीड़ा की उमड़ी लहरों की
भावित पंगति है |
भूली बिसरी यादों की छत
ईंट सुहानी है,
शब्दों के संवादों की यह
नई कहानी है,
यह सामाजिक घटनाक्रम की
छाया संप्रति है |
आसमान का पूर्व क्षितिज है
सूरज का रथ है,
भावों की यात्राओं की वह
पगडण्डी, पथ है,
ध्वनि-तुरही के नसतरंग की,
स्नेहिल संगति है |
शब्दावलियों के गमलों का
घेरा, यह थाला,
अनुभव के अनुषंगों की है,
गुथी हुई माला,
वाणी के लय ताल छंद की,
अनुपद दंपति है |
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी
मेरठ