नवगीत
मित्रो ! एक श्रद्धांजलि-गीत-
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किशन सरोज
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गीतों के सुरभित फूलों की
माला, किशन सरोज.
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पीड़ा की अनुभूति हुई जो,
शब्दों में अभिव्यक्त मनोहर,
अलंकार सौन्दर्य बने फिर,
भाषा की अनुरक्त धरोहर,
स्वस्थ प्रेम-मकड़ी का शाब्दिक
जाला, किशन सरोज.
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करुण कथाओं के सौरभ का,
जहाँ हुआ है स्वर-अभिषेचन,
समयोचित आदर पाया है,
आदर्शों का रम्य विवेचन,
सार्वजनिक सुख-दुःख का दीया,
आला, किशन सरोज !
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भावों की नैसर्गिक छवि में,
शैली की है अनुपथ सुषमा,
फैली है सामाजिकता की,
पंक्ति-पंक्ति में क्षैतिज उष्मा,
स्नेह-सुधा से भरा पूर्णत:
प्याला, किशन सरोज !
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वैतरणी के प्रमद प्रवह में,
डूब गया है चंदन का वन,
आँसू में डूबी है अभिधा,
समिधा का भी मन है अनमन,
गीत-विधा से कभी न बदले
पाला, किशन सरोज !
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(०८.०१.२०२० को गीतकार किशन सरोज, बरेली उ.प्र.की मौत के बाद मन में उपजे भावों का एक छोटा संकलन)
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११.०१.२०२०
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शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ