नवगीत
पक्का पुल अँगरेजोंवाला
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जर्जर रिक्सा, खींच रहा है,
रामखिलाड़ी, खट-खट-खट.
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तीन सवारी, लदी हुई हैं,
पीठ सटाकर, आगे-पीछे,
वर्षा का यह, ऋतु बसंत है,
पहिये पैदल, गड्ढे-बीछे,
कान मूँदकर, आगे बढ़ती,
जंजीरों की, कट-कट-कट.
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खड़ी चढ़ाई, अड़ी सामने,
हारा दमखम, चढ़ता पैसा,
पक्का पुल, अँगरेजोंवाला,
हँसता है, अँगरेजों जैसा,
चमड़ी बोल रही है, भीगी,
हटिए-हटिए, हट-हट-हट.
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नदी गोमती, मटमैली सी,
पुल के नीचे, तैर रही है,
एक साँझ की, यह विशालता,
मानवता का, पैर रही है,
सफेद बादल, टहल रहे हैं,
बूँदें झरतीं, पट-पट-पट.
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विकसित युग में, भूख अपरिचित,
बनी हुई है, घोड़ागाड़ी,
बिन चश्में की, दीख रही है,
अंग-अंग की, नाड़ी-नाड़ी,
रंग-भवन में, बैठी रंगत,
मजे उड़ाती, गट-गट-गट.
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शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ