नवगीत
मुटुरी मौसी
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चढ़ी बाँस पर
पतई तोड़े
बछिया खातिर
मुटुरी मौसी
झुककर पकड़ी
ऊँची फुनगी
जीती केवल
अपनी जिनिगी
डाल मरोड़ी
अपने दम से
पतई तोड़ी
आते क्रम से
स्नेह लुटाती
मुटुरी मौसी
श्रम की पढ़ती
कथा कहानी
बोले अक्सर
मीठी बानी
बुरे कर्म को
डाँट रही है
खुशियाली ही
बाँट रही है
घर की नानी
मुटुरी मौसी
चना-चबेना
फाँका-फाँका
चावल घर में
कभी न झाँका
गिरता आँसू
चाट रही है
घर की खाई
पाट रही है
अंजर-पंजर
मुटुरी मौसी
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ