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27 May 2023 · 1 min read

नर्म बिछौना

मत समझो
जीवन को प्यारे,
कोमल नर्म बिछौना।

उबड़-खाबड़
पगडंडी- सा
चलता तिरछा -आड़ा,
कभी जेठ की
तपती गर्मी,
कभी शीत का जाड़ा।

मंदिर में घड़ियाल बजाता,
करता काम घिनौना।

नित्य साथ में
अरमानों की,
लेकर चलता टोली।
करता रहता है तुरपाई
फटी भाग्य की झोली।

गंडा,रक्षा,
ताबीज़ों का,
रहता लगा दिठौना।

जोड़ रहा है
हर-पल देखो,
संघर्षों की थाती,
नहीं डाकिया
उसको देता,
सुख की कोई पाती।

बिना खुशी सँग
शादी के ही,
हो जाता है गौना।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय

Language: Hindi
157 Views
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