नये वर्ष का भाग्य
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दिन, महीने, वर्ष।
सत्ता संघर्ष।
पुन: गिड़गिड़ाएगा आदर्श।
पल,छिन,घड़ी।
स्वनाम धन्य मढ़ी।
पुन: करेगा गड़बड़ी।
लोभ,ईर्ष्या,स्वार्थ।
लक्षित रहेगा पदार्थ।
इंसान भुलाता रहेगा परमार्थ।
शांति हेतु प्रार्थना।
विफल रहेगा मानना।
जन्मेगा पुन: नयी प्रताड़ना।
अभिमान और अहंकार।
गलियों में गुजरेगा साकार।
जश्न मनाएगा पुन: संहार।
विषाद,व्यथा,दर्द।
सम्पूर्ण और अर्द्ध।
निगलता रहेगा पुन: मर्द।
अपना अपना भय।
खुद से खुद का पराजय।
आदमीयत पुन: करेगा क्षय।
मन और तन की नग्नता।
धर्म व संप्रदाय की भग्नता।
बनाए रखेगा पुन: संलग्नता।
हथियारों के नए नस्ल।
उगाये जाएंगे जैसे कि फस्ल।
आदमी के शक्लों से निकलेंगे
पुन: नए-नए शक्ल।
आँसू,आह और मर्मांतक कराह।
क्रंदन,विलाप अथाह।
हर रौशनी को करेगा पुन: स्याह।
असमंजस में रिश्ते।
गरीबी अमीरी के भिड़ते।
जैसे रहे रिसते पुन: रहेंगे रिसते।
स्वर्ग-सुख की भावना।
अच्छे दिनों की कामना।
मरेगी इनकी पुन: संभावना।
सुख की अदम्य चाहना।
‘होगी कभी स्याह ना’।
होगी कुंठित पुन: ये धारणा।
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अरुण कुमार प्रसाद 01/01/23