नये जमाने के नवयुवा
हैं हम नये जमाने के नवयुवा,
क्या करें जो लोग देख कहें तौबा।
दिन भर चौराहे पर जमे रहना,
हर आती जाती पर ताने कसना।
सीगरेट,गुटखों से महफ़िले सजाते,
पापा के अपने साहबजादे कहलाते।
सड़कों पर गाड़ीयां हैं ऐसे दौड़ाते,
सड़कें सरकार की जगह हमारे अब्बा जो बनाते।
स्कूल, कालेज में बस भीड़ बढ़ाना,
पढ़कर कौन सा है नाम कमाना।
धौंस अपनी सब पर दिखलाकर,
देते हम भी तो पापा को नाम कमाकर।
लौटते हैं जब घर को तो,
नज़रें ढुंढती रहतीं है सबको।
बहन की तरफ देखें जो आंख उठाकर,
आंखें ना रख दूं उसकी निकालकर।
जग जाता है मेरे अंदर का पौरुष ,
जाने क्यों बाहर हीं रहता हूं बनकर पशु।