नयी हैं कोंपले
* गीतिका *
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नयी हैं कोंपले देखो भरी हर एक डाली में।
सरस हर रंग की निखरी छटा कुदरत निराली में।
सुहानी भोर का है दृश्य स्वर्णिम रश्मियां बिखरी।
दिशाएं सब सुसज्जित हो गई हर ओर लाली में।
जरूरी है हमें रहना सजग हर हाल जीवन भर।
अनावश्यक नहीं लाएं कभी तूफान प्याली में।
नदी पर्वत मुसीबत के अनेकों कष्ट हैं सम्मुख।
सँभलकर है हमें बढ़ना घटा घनघोर काली में।
गरीबों की करें सेवा यही है मार्ग अति उत्तम।
करें कुछ कार्य जनहित के समय बीते न खाली में।
सहजता से नहीं मिलते कभी जब प्रश्न के उत्तर।
जगी रहती पिपासा जानने की हर सवाली में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य