नया साल
नया साल
======
हर दिन क्या ? साल दर साल बीत जाते हैं
यह साल बीता आ रहा फिर साल नया,
हम कल, आज और कल से जूझते रहते हैं
वक्त की नज़ाकत कब समझ पाते हैं ?
गर इम्तिहान के दौर हैं तो सब्र भी बना रहे
फिर वक़्त के न जाने की बात होगी न आने की
जिंदगी के हर पल पल को भरपूर है जीना
बुनते रहना है आँखों में एक नया सपना
ये सफर कभी तो होता है बहुत सीधा
कभी अडचनें भी रोक लेतीं हैं रास्ता
बहुत बारीक़ होती है बंधन की बेड़ियाँ
होता नहीं अहसास कभी आसां इनका
खुद उलझनें सुलझा कर ही इन्हें समझना है
बहुत ही नाजुक हैं जो तोड़ देतीं हैं रिश्ते
समय जब- तब करवट बदलता रहा है
लहराती नाव सी मंज़िल पर पहुँचना है
तू उदासियों को नज़र से झटक देना
हर मुश्किल चुनौती है यह तू समझ लेना
हार हो या जीत आगे ही तो है बढ़ना
पीछे देखने का वक़्त नहीं- न है कोई बहाना
===========================≠
स्वरचित
महिमा शुक्ला, इंदौर, म.प्र.