नया साल २०२१
साल दो हज़ार बीस, बवाल कर गया।
लोगों की ज़िन्दगी, बेहाल कर गया।
ऐसा नहीं कि सब के सब ग़रीब हुए,
अस्पतालों को मालामाल कर गया।
ग़रीब मज़दूर के हालात देख लो,
जिनको ये साल बस कंगाल कर गया।
हर दरवाज़े पर मौत, ख़ूब नाची है,
इससे बुरा क्या, जो ये साल कर गया।
हम मॉडर्न बनकर ग़ुरूर करते रहे,
जीने के तरीक़े पर सवाल कर गया।
ऐसा भी नज़ारा, कभी देखा नहीं,
घर चौबारों को, अस्पताल कर गया।
देखते हैं, नया साल कैसा होगा।
क्या दो हज़ार बीस के जैसा होगा।
सुना है इक्कीस, कुछ बेहतर होगा,
मगर क्या, जीवन पहले जैसा होगा।
हुक़ुमत कहती है, आगे दिन अच्छे हैं,
क्या ग़रीब की जेब में, पैसा होगा।
हमने कुदरत को शायद मज़ाक समझा,
कुदरत बोली, जैसे को तैसा होगा।
संजीव सिंह ✍️
२९/१२/२०२०
नई दिल्ली