नया साल जिससे भाये।
“नया साल जिससे भाये।”
मातु शारदे !ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।
वीणापाणि हमें वह स्वर दो, सहज सुखद लेखन पायें।
दिन में खून पसीना बहता ,रात सुहानी हो जाती ।
श्रम के बस जर्रे जर्रे से , बात कहानी हो जाती।
कलम अगर इतिहास लिखे तो, करुणा लेखन बन जाये।
वीणापाणि! हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पाये।
मातु शारदे! ओजस भर दो ,नया साल जिससे भाये।(1)
बाल, युवा,मातायें, बहनें, सुखमय जीवन जी पायें।
शिक्षित होकर दशों दिशा में, अपना परचम लहरायें।
मातृ भूमि की सौंधी खुशबू, शोभित लेखन में आये।
वीणापाणि हमें वह स्वर दो, सहज सुखद लेखन पायें।
मातु शारदे! ओजस भर दो,नया साल जिससे भाये।(2)
कोरोना की विकट समस्या ,डेंगू का भय फैला है।
सीमा पर है सैनिक उलझे, हर चीनी दिल मैला है ।
नव प्रकाश माता जग को दो ,कृपा बरसती ही जाये।
वीणापाणि !हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पायें।
मातु शारदे! ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।(3)
विश्व युद्ध की आशंका से, झूल रहा जग है सारा।
नर्तन होगा अगर मृत्यु का, जो जीता वो जग हारा।
सूनी मांगे ,सूनीआंखें, क्रंदन लेखन बन जाये।
वीणापाणि! हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पायें।
मातु शारदे! ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।(4)
सहज लेखनी चले हमेशा, कालचक्र की लिख गाथा।
सृजन लेखनी से होता जो ,चूम रही जग का माथा।
मातु शारदे !वीणा के सुर ,झंकृत लेखन में आये।
वीणापाणि! हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पायें।
मातु शारदे !ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।(5)
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी ब्लड बैंक,
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
261001(पिन)
मोब 9450022526