नव भारत
न डरना है न सहना है, हमें नव भारत फिर से गढ़ना है।
सब्र की बाँध है टूट गयी, अब तो हालातो से लड़ना है।।
शान्ति के चक्कर मे हम, दिन गिन गिन कितने काटेंगे।
अब भी अगर न उग्र हुए तो कल, कुत्ते भी मुँह चाटेंगे।।
हम पालक हैं, हम पोषक हैं, हम अपनो के शुभचिंतक हैं।
हम वीर पूत माँ भारती के, आतंकी के प्रति हिंसक हैं।।
शास्त्र की जिनको समझ नही, उन्हें क्या ज्ञान पिलाना है।
शस्त्र की भाषा हैं जो जानते, उन्हें उनकी याद दिलाना है।।
हम राम कृष्ण को पूजने वाले, अब नरसिम्हा को बुलाऐंगे।
मौन तोड़, कर सिंह सी गर्जन, दुश्मन का दिल दहलाएंगे।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०७/०७/२०२२)