‘नया बाल दिवस’
‘नया बाल दिवस’
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आखिर क्यों हुएं , इतने बेबस;
आज ही मनाए , ‘बाल दिवस’।
चौदह नवंबर थे , जन्मे ‘नेहरू’;
बाकी दिन जैसे,आए ऐरू-गैरु।
सब ही करते थे बच्चों से प्यार,
ऐसा क्या था, नेहरू का दुलार।
बच्चे तो थे बहुत, भारत देश में;
घूम रहे थे ‘नेहरू’, नेता भेष में।
पता नही, वें किसे सींचा-सांचा;
पीएम बने, बालश्रमी के चाचा।
‘गरीबी’ थी , बच्चों में बेमिसाल;
क्या कर दिए थे, नेहरू कमाल।
पड़ोसी बच्चे ने,क्या चाचा कहा;
ये देश, बनावटी भावना में बहा।
लगे औरों को,बच्चों से नहीं मेल;
चाहे हो, राजेंद्र या सरदार पटेल।
एक ही बने थे, जबरदस्ती चाचा;
जिनके मन,बालश्रम का खाका।
आज वही बालश्रमी, चिल्ला रहे;
सभी मिल,’बाल दिवस’ मना रहे।
ऐसे चाचा, हर-घर बसे भारत में;
पता नही,कौन थे किस स्वार्थ में।
एक निःस्वार्थ को जानो,अच्छे से;
‘स्नेह’और प्यार, था उन्हें बच्चे से।
‘भारतरत्न’ , ए.पी.जे. कलाम वो;
सर्वस्व दे दिया,बच्चो के नाम वो।
सब मनाएं,उनका भी जन्मदिवस;
कहें इसे ही अब,नया बाल दिवस।
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स्वरचित सह मौलिक;
…….✍️ पंकज कर्ण
…………..कटिहार।।