नया दिन, नयी पहल
रोज सुबह होती है, नया दिन निकलता है,
एक आध नही, ढेरों मौके देता है,
चारों ओर हमारे रोशनी कर देता है.
मगर हम नादान, जाने क्यों भटक जाते हैं,
इतना सुनहरा मौका अपने हाथों से गवांते हैं.
वक्त बीत जाने पर, हमें एहसास होता है,
थोड़ा बहुत जो किया था, वो भी बर्बाद होता है.
खैर, जब शाम होती है, और हम थकते हैं,
अपनी हर एक गलती को याद करते हैं.
फिर पछतावा होता है, और मन बदलता है,
ऐसे में एकबार, नया दिन निकलता है,
हमारी तरह हर कोई एक नयी पहल करता है.