नयन हुए दो चार, जागी प्रीत पुरानी
सम्मुख पड़ी सांवरी सूरत, सुध-बुध सब विसराई
रोम रोम रोमांच हुआ, पलक नहीं झपकाई
देखत आनन मौन हुआ, बोलन लागे नैन
नयन नयन में हो गए, मीठे मीठे वैन
नयन हुए दो चार, जागी प्रीत पुरानी
तन मन दोनों हुए प़फुल्लित, प्रीत न हृदय समानी
देख रहे थे एकटक दोनों, पलक नहीं झपकानी
बने हुए हैं एक दूजे को, मन ही मन पहचानी
दृगों से अंतस उतर गईं, दो आत्माएं अंजानी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी