***नयनों की मार से बचा दे जरा***
***नयनों की मार से बचा दे जरा***
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कुछ बूँदें प्रेम की गिरा दे जरा,
तन-मन की प्यास को बुझा दे जरा।
मय से हैँ जो भरे नयन नील से,
आ प्याले जाम के पिला दे जरा।
रोशन होगा जहां अगर तुम मिलो,
जीने की आस को जगा दे जरा।
आई है शाम शरबती दर – सदर,
दो ही पल प्यार के बिता दे जरा।
यूँ बदरी बरसती रहे रात – दिन,
घुट कर गलहार तो लगा दे जरा।
मनसीरत चेहरा दिखे दिलदार का,
नयनों की मार से बचा दे जरा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)