नम पड़ी आँखों में सवाल फिर वही है, क्या इस रात की सुबह होने को नहीं है?
नम पड़ी आँखों में सवाल फिर वही है,
क्या इस रात की सुबह होने को नहीं है?
उमीदों की कश्ती के आगे तूफ़ान फिर वही है,
पर इस बार पतवार उठाने की ताक़त मुझमें नहीं है।
जो मुझको डूबो दे, सैलाब चाहतों का वही है,
पर धड़कनों को अब फिर से उबारने की चाहत मुझमें नहीं है।
ख़्वाहिशों में रंग शिद्दतों का फिर वही है,
पर इंद्रधनुषी सपनों की जगह, इन आँखों में अब नहीं है।
मंजिलें तो नयी हैं, पर रास्ते फिर वही हैं,
जिनपर चलने की हिम्मत, थक चुके क़दमों में अब नहीं हैं।
बहारों ने बिछाये, फूलों के गलीचे वही है,
पर फूलों को कुचलने की, आदत मेरी फ़ितरत में नहीं है।
आँखों से दिल तक पहुंचे, मुस्कुराहटें ये वही है,
पर मुस्कुराहट से इन आँखों का रिश्ता कभी क़ायम हुआ हीं नहीं है।
अक्स शीशे में ख़ुद का आज भी दिखता वही है,
पर इस अनजान शख़्स की पहचान मुझसे अब तक हुई हीं नहीं है।