नम आँखे
सुहानी शाम कितनी हो
भरा हो प्रेम अंतस में ,
बिना तेरे लगे फीका
नहीं मन लागे उपवन में ।
कहा बेशक था हमने कि
बड़े शिद्दत से चाहा था,
सदी को त्याग कर मैंने
तुम्हे था दिल से अपनाया ।
प्रेम महलो का बासिन्दा
कभी भी हो नहीं सकता ,
सभी है जानते यह सच
कमल कीचड में है खिलता ।
दिवस भी धुंध सा लगता
उनीदी लगती है रातें ,
सरोवर जल से ठहरी नींद
जब होती नहीं बातें।
तेरी नम आँखों में आंसूं
नहीं बहते है क्यों करके,
किया है यत्न पर कितना
नहीं बेबस निकलते है।
घटा ना झूम के बरसी
नहीं सावन ही है आया,
कही फूलों के अश्कों ने
नहीं तुमको है भरमाया ।
बनी है दुर्ग वो पलकें
बने भौवें है पहरेदार,
निभाते अश्क भी रस्मे
बने जैसे हो रिश्तेदार।
यही करके तेरे आंसूं
कदाचित है रहे सिमटे ,
कही कमजोर न बन जाओ
रहे पलकों पे वे ठिठके।
जबकि जुल्म झेले है
वफ़ा से अपने ये ज्यादा ,
सहे अवसाद कितने फिर
भी पूरा किया वादा।
तेरी आँखे है नम क्यू आज
समझ आता नहीं मुझको ,
किसी ने दिल दुखाया या
किसी का दिल दुखा तुमसे।