*नमस्तुभ्यं! नमस्तुभ्यं! रिपुदमन नमस्तुभ्यं!*
पीड़ित-प्रताड़ित मानव ने
जब-जब लगाई गुहार
तब-तब ही हुई अवतरित,
शक्ति ने किया आततायी-संहार|
चक्रधर ने भी ज्यों त्याग निद्रा
किया चक्र-संधान
हुए नयन तुम्हारे भी
प्रज्ज्वलित अग्नि समान|
कोई आपदा-विपत्तियों का दौर
किन्तु आज ही नहीं, हर बार
अकेले तुम ही नहीं
हम भी हैं रण हेतु तैयार|
व्याख्यान भी तुम्हारा
है सिंहनाद के समान
अश्रुपात से होता है
झरने के रौरव निनाद का भान|
संकल्पित हो यदि तुम
तो हम भी कृत-संकल्प
अरि हैं यदि चहुँ ओर
तो तत्पर है अरिहन्त!
शब्दार्थ
रौरव-भीषण, भयंकर
निनाद-ज़ोर की आवाज़
अरिहंत-अर्हत् (संस्कृत) और अरिहंत (प्राकृत) पर्यायवाची शब्द हैं। अतिशय पूजा-सत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये ‘अरिहंत’ (अरि=शत्रु का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं।