नमन हे मॉं सरस्वती
हे तूलिके तू नमन कर
साहित्य की इस देवी को
जिससे तेरी पहचान बनती
नमन हे मॉं सरस्वती ।
नमन हे मॉं सरस्वती
हे श्वेत हंस विराजनी
वीणा करों में शोभती
वेद चारों जिह्वा जिसके
हैं परायण करती रहती।
नमन हे मॉं सरस्वती
अज्ञानता का तम हटे
ज्ञान की हो रोशनी
संगीत स्वर की देवी हो
नमन माँ भुवनेवश्वरी ।
नमन हे मॉं सरस्वती
मूर्ख भी हो वेदपाठी
संगीत जड़ता में तिरोहित
मां शारदे तेरी कृपा से
मूक को वाचाल करती ।
नमन हे मॉं सरस्वती
हो संग कितनी सम्पदा
वैभव भरी हो चाहे कितनी
सब मगर है व्यर्थ समझो
साथ यदि नहि भारती ।
नमन हे मॉं सरस्वती
शत शत नमन हे आर्ष ग्रन्थ
है अर्चना पावन धरा की
साहित्य का जगमग हो पंथ
शत शत नमन बागेश्वरी।
नमन हे मॉं सरस्वती
निर्मेष