नमन तुमको
आओ हम उस वीर धरा का
विश्व से परिचय कराएं।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
अविच्छिन्न था देश हमारा
सकल विश्व में था विख्यात।
उत्तुंग हिमालय किरीट सजे
रहता जिसके शीश दिन-रात।
उस पराक्रमी धरती पर हम
पुनःपुनः ये शीश झुकाएं।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
शौर्य था जिस देश का दीपक
विजय थी वर्तिका जिसकी।
कोई तिमिर न रोक सका
दमकती हस्ती को उसकी।
दैदीप्यमान इस प्रकाश से
सृष्टि अखिल जगमगाएं।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
भारत के वीर बांकुरों की
सुनते थे शौर्य मयी गाथा।
वे सुभट वीर रण आंगन में
भारत माँ को टेकें माथा।
थर्राता था काल भी जिनसे
डरती थीं जिनसे बलाएं।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
भगतसिंह चन्द्र शेखर सुभाष
किस-किस का नाम गिनाऊं मैं।
रानी झांसी आजाद शिवाजी
सबको शीश नवाऊं मैं।
इन शूरवीरों के पराक्रम
के हर दिन गुण हम गाएं।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
शत्रु को धूल चटाते थे
ठोकर में उनके था दुश्मन।
इक-इक को चुन-चुन मसल-मसल
करते थे दुश्मन का मर्दन।
दहाड़ कर सिंह गर्जना से
शत्रु के छक्के छुडाए।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
आजादी के मतवालों ने
न देखी बरखा न आंधी।
सर बांध कफन चलते थे
थी मौत हथेली पर बांधी।
डर किसे यहां था मरने का
मृत्यु से थे नैन लडाए।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
गोरे फिरंगियों को भी जिन
वीरों ने धूल चटाई थी।
उनकी ही प्राण आहुतियां से
हमने स्वतंत्रता पाई थी।
आजादी की अनमोल धरोहर
उनके हाथों ही हम पाए।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
आज स्वतंत्र भारत में उनसे
न हम सब यूँ अनजान बनें।
उनको शत्-शत् हम नमन करें
हम सबका वे अभिमान बनें।
भारत माता के आँचल में
ये रत्न अमोल है जड़ाएं।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
उत्कीर्ण हो उनका यशोगान
हर भारतवासी के उर पर।
हम नाज करें उन वीरों पर
दे गये स्वातन्त्र्य मुकुट सिर पर।
आगे अमूल्य इस सौगात के
व्यर्थ सकल धन सम्पदाएं।
गौरवशाली भारत वैभव का
परचम फिर लहराएं।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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