नमन तुमको है वीणापाणि
भॅवर में ज्ञान की कश्ती
करो उस पर तुम माता
जननी ज्ञान की हो तुम
दया मुझ पे करो माता ।
कुंठित ज्ञान की गंगा
पड़ी अज्ञान सागर में
ज्ञान विज्ञान के संगम
में उलझा हुआ है वो।
चुनौती दे रहा विज्ञान
बना है आज भस्मासुर
तुम्हारे कोख में पल के
तुम्ही पर वॉर को आतुर।
चतुर्दिक युद्ध के बादल
क्षितिज को आज है घेरे
रही दम तोड़ मानवता
परिधि से दूर है उनके।
उन्हें सद्ज्ञान दो हे शारदे
बचा लो आज पीढ़ी को
भयातुर वृद्ध बालक सब
कृपा की दृष्टि अब डालो।
कृपा अतिरेक वीणावादिनी
जिस पर हुई तेरी
कोई था रत भलाई में
किसी ने खींच ली चमड़ी।
कृपा तेरी रहे मां भारती
इस मंच पावन पे
लिए अलोक सिरजन का
लगे साहित्य के मेले।
नमन निर्मेष का तुमको
नमन तुमको है वीणापाणि
अमिय बस ज्ञान का बरसे
हरो अज्ञान की फेनी।
निर्मेष